Wednesday, October 11, 2017

बाप्पा.....


अनंत चंदूरदशी झाली …. नाद दुमदुमला ….

आरोळ्याने बाप्पा समाधानी झाला …..

नैवैद्य झाला, आरत्या झाल्या …..

वातावरण प्रसन्न करून गेला

 

आरती, समाधान, दान, स्तोत्र 

व्रतवैकल्य, पूजा, भजना घालवी भाविक  रात्र

बाप्पा ला मोदक, शेंदूर, जसवंद सुपात्र

भक्ती भाव,समाधान नांदे मनी  आर्त

 

हा सगळा  खटाटोप  केला  लोकमान्यांनी  कशाला  ? तर  एकी  वाढावी  म्हणून …. सगळे  एकत्र  येतील , चांगल्या चर्चा होतील, विचारांची  देवाण  घेवाण  होईल , चांगले  विचार जुळतील , क्रांती  घडेल , स्वातंत्र्या साठी  पूरक वातावरण तयार होईल, एकी हेच बळ  अस  म्हणत  सगळं  सुरळीत  होईल ….

पण  मग  एक  गाव  एक गणपती …. ह्या  प्रमाणे  मानाचे  पाच  आणि  जुने  गणपती  अजून  पाच  अश्या  प्रमाणे  … दहा  ते  पंधरा  गणपती  आणि  गणेशोत्सव  ही   संकल्पना  का  बर  अमलात  आणली  नाही  गेली ….

एक  गाव एक  गणपतीअस राहता  एक  गल्ली एक  गणपती  झाल्याने …. अनंत  चतुर्दशीच्या दिवशी  साधारण  सकाळी  दहाला  सुरु  झालेली  मिरवणूक  दुसऱ्या  दिवशी  चार  पर्यंत  चालूच  असते. एक  गाव एक  गणपतीअस राहता  एक  गल्ली एक  गणपती  झाल्याने …. अनंत  चतुर्दशीच्या दिवशी  साधारण  सकाळी  दहाला  सुरु  झालेली  मिरवणूक  दुसऱ्या  दिवशी  चार  पर्यंत  चालूच  असते.

त्यात  गणपतीच्या  आरत्या , भजन अस काहीही  ऐकू  येता  …. “बाबा  लगीनढिंचॅक  ढिंचॅक ” “शांताबाई ….. झिंग  झिंगातट्ट ….में  नागीण  नागीण ….. अशी  एका  हुन  एक  सर्रास  अप्रतिम  दर्जाची  गाणीआणि  त्यावर  स्पीकरची  भिंत ….. घुमणारा  आवाज ….. डोळे  दिपून  जाऊन , डोकं उठवणार अप्रतिम  lighting…. गुलालाची  उधळण …. आणि  अंग  विक्षेप  करून  नागोबा  प्रमाणे  डुलणारी  लोक ”…. हे  दृश्य  अगदी  समाधान  देऊन  जात

आणि  मग  खरंच  प्रश्न  पडतो …. की लोकमान्य  असते  तर  कदाचित  गांधीजींच्या  तीन  माकडानं प्रमाणे  शांत  बसले  असते ….. कदाचित  त्यांच्या  पापण्या  ओलावल्या  असत्या …. कदाचित  संतापाने  लाल  बूंद   झाले  असते …. कदाचित  लेखणीतून  काहीतरी  जहाल  आणि  मुद्देसूद  काही  बाहेर  आल  असत. पण  हे  वाचायला  तरी  वेळ  असला  असता  का ….

कारण  काहीजण  नाचण्यात  दग , काहीजण  स्पीकरचा  volume वाढवण्यात ….काहीजण  दारूच्या  बाटल्या  कुठल्या  500 meter च्या  बाहेरच्या  दुकानात  मिळतील  हे  शोधण्यात  दग …. काहीजण  लहान  पोरांना  स्पीकरच्या  समोर  ट्रॅक्टरवर  ठेवण्यात  busy (बहुतेक  असा  भाव  असावा  की ….देवाच्या  मूर्तीच्या  इतक्या

 जवळ  ठेवला  की  माझ्या  मुलाला  खूप पुण्य  मिळणार )…. काहीजण  गुलाल  उधळण्यात ….काहीजण  कणीस , कॉर्न चाट , वडापाव , चहा  असे  तत्सम  पदार्थ  खाऊन  उरलेल  रस्त्यात  टाकण्यात  मग्न….

देवळात  वेगळीच  गत  …. तरी  दर  वर्षी  आपण  जाणार , दर्शन  घेणार … (त्यातलीच  मी  पण  एक  भक्ती  भावाने  जाणारी  भाविक )

देवा  तुझ्या  दारापुढे  उभी  मोटोरांची  रंग

पायी  आलो  दर्शनाला  , आता  कसा  येऊ  सांग ?

 

देवा  तुझ्या  दर्शनाला  मंत्री  आणि  नेते  येति

बंदुका  रे  आम्हावरी , त्यांचे  रक्षक  रोखती .

 

देवा  तुझ्या  दर्शनाला  फळे , मिठाईची  दाटी

कुठे  लपवावी  सांग  गुलखोबऱ्याची  वाटी

 

देवा  तुझ्या  मुकुटात  सोने  आणि  लाख  हिरे

माझ्या  हातातले नाणे  ओशाळून  मागे  फिरे

 

देवा  तुझ्या  अंगावर  रोज  नवीन  दागिना

समजेल  का  तुला , माझी  उपाशी  वेदना

 

देवा  तुझ्या पायाखाली  आता  चांदीची  रे  वीट

तुझ्या  दर्शनाचे  फडे , तुझा  पुजारी  तिकीट

 

देवा  तुझ्या मंदिराची  वाट  जुनी  हि  सोडतो

तुला  ठेवतो  हृदयी , हात  इथूनच  जोडतो

(watsapp var ही वरील  कविता  आली  होतीखूपच  आवडली  म्हणून  इथे  टाकण्याचा  मोह  आवरता  आला  नाही )

हे सगळं पाहून लोकमान्यांचे  तर  डोळे  पाणावले  असतीलच …. पण  आपल्या  बाप्पाचे  कान , डोळे  आणि  डोकं  इतक  भनभनल  असेल ….कि  मला  आता  वाटूच  लागलय  कि बाप्पाला  आता  कुठलीच  प्रार्थना  ऐकू  येत  नसेल …. ह्या  कर्णकर्कश  आवाजा  पुढे  भाविकांची  प्रार्थना  त्याला  ऐकूच  yeu  शकत  नाही …. झगमगतात , भरजरी  शेलया  मध्ये , हिरे  माणक्यांच्या प्रकाशा  पुढे  त्याला  भाविक दिसतच  नसेल …..आणि  ह्या सगळ्यात  तोच  एकटा  पडलाय ….. आणि  तोच  बाप्पा  आता  त्याच्या  बाप्पाला  म्हणत  असेलमला  हे  दहा दिवस  नको  होत  होजीव  गुदमरतो , डोळे  पाणावतात , आणि  डोकं  भणभणत …. आता  प्रलय   आला  तर  कोण  वाचवेल ….